गुरुवार, 26 मई 2011

बंद करो चूहे खाना






शिशुगीत 
 सुनैना अवस्थी
चूहा बोला - ' चीं चीं चीं ,
सुनिए बिल्ली मौसी जी ,
रोग प्लेग का फैला है ,
बड़े- बड़ों ने झेला है ,
बंद करो चूहे खाना ,
पड़ सकता है पछताना .
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चित्र साहित्य संगम , इलाहबाद से प्रकाशित नागेश पांडेय ' संजय' की पुस्तक ''भाग गए चूहे'' से साभार . 



9 टिप्‍पणियां:

  1. aapka blog dekha. ummid hai, leek se alag hatker cheejen padhne ko milengi. shubh kamnaen.

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  2. aapke aashish vachan pakar bahut khush hun . yah mere liye bahut badi uplabdhi hai .

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  3. सुनैनाजी,
    ब्लॉग देख कर खुशी हुई पर अभी कम बाल कवितायेँ ही है.आशा है निकट में और भी अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी. हाँ, मेरे एक प्रिय गीतकार रमेश रंजक का एक गीत मुझे बहुत प्रेरित करता है, आपसे भी शेयर कर रहा हूँ, सादर, रमेश तैलंग.

    वक़्त तलाशी लेगा
    वह भी चढ़े बुढ़ापे में
    सँभल कर चल ।

    कोई भी सामान न रखना
    जाना-पहचाना
    किसी शत्रु का, किसी मित्र का
    ढंग न अपनाना

    अपनी छोटी-सी ज़मीन पर
    अपनी उगा फसल
    सँभल कर चल ।

    ख्वारी हो सफ़ेद बालों की
    ऐसा मत करना
    ज़हर जवानी में पी कर ही
    जीती है रचना

    जितना है उतना ही रख
    गीतों में गंगाजल
    वे जो आएंगे
    छानेंगे कपड़े बदल-बदल
    सँभल कर चल

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  4. सुनैना जी सुन्दर बाल गीत एक शिक्षा देती हुयी -लिखते रहिये- और रचिए हम बच्चों के लिए

    बच्चे मन के सच्चे हैं

    प्यारे कितने अच्छे हैं

    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर" ५

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  5. यह बाल कविता तो बहुत बढ़िया और रोचक है!
    बिल्कुल बाल मन के अनुरूप!

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